
जो व्यक्ति हज्ज या उम्रा करना चाहता है उसे मीक़ात पर क्या करना चाहिए?
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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
‘‘जब वह मीक़ात पर पहुँचे तो उसके लिए मुस्तहब (अच्छा) है कि वह स्नान करे और सुगंध (खुश्बू) लगाए। क्योंकि यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एहराम बांधने के समय सिले हुए वस्त्र उतार दिए और स्नान किया। और क्योंकि सहीहैन (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम) में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से साबित है कि उन्हों ने फरमाया : (मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सुगंध लगाती थी आपके एहराम के लिए आपके एहराम बांधने से पहले, और आपके हलाल होने पर आपके काबा का तवाफ़ करने से पहले।) तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को, जब वह मासिक धर्म से हो गईं और उन्हों ने उम्रा का एहराम बांध रखा था, यह आदेश दिया कि वह स्नान कर हज्ज का एहराम बांधें। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अस्मा बिन्त उमैस को जब उन्हों ने ज़ुल-हुलैफा पहुँचकर बच्चे को जना, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आदेश दिया कि वह स्नान करें और कपड़े का लंगोट बांध लें और एहराम बांधें। इससे पता चला कि औरत जब मीक़ात पर पहुँचे और वह मासिक धर्म से हो या बच्चे के जनने के बाद उसे खून बह रहा हो, तो वह स्नान करेगी और लोगों के साथ एहराम बांधेगी और वह अल्लाह के घर (काबा) का तवाफ़ करने के अलावा हर वह काम करेगी जो एक हाजी करता है, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा और अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को इसका आदेश दिया था।
जो आदमी एहराम बांधना चाहता है उसके लिए मुस्तहब यह है कि वह अपनी मूंछ, अपने नाखूनों और अपने जघन और बगल के बालों की देखभाल करे, चुनाँचे जिसे काटने की ज़रूरत हो उसे काट ले, ताकि ऐसा न हो कि उसे एहराम के बाद उसे काटने की जरूरत पड़े जबकि वह उसके ऊपर (एहराम की हालत में होने के कारण) हराम व निषिद्ध हो। और इसलिए कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों के लिए इन चीज़ों का हर समय ध्यान रखने का हुक्म दिया है। जैसाकि सहीहैन में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (पाँच चीज़ें प्राकृतिक हैं : खत्ना, उस्तरे से जघन के बालों को साफ करना, मूंछें कतरना, नाखून काटना, बगल के बाल उखाड़ना।) तथा सहीह मुस्लिम में अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया: (हमारे लिए मूंछें कतरने, नाखून काटने, बगल के बाल उखाड़ने और जघन के बालों को मूंडने के विषय में समय निर्धारित किया गया है कि : हम उन्हें चालीस दिन से अधिक न छोड़ें।)
जबकि नसाई ने इन शब्दों के साथ रिवायत किया है कि : (हमारे लिए अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने समय निर्धारित किया है।) तथा अहमद, अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने नसाई के शब्दों के साथ रिवायत किया है। रही बात सिर (के बालों) की, तो एहराम बांधने के समय इसमें से कुछ भी लेना (काटना) धर्मसंगत नहीं है, न तो पुरुषों के लिए और न ही महिलाओं के लिए।
जहाँ तक दाढ़ी का संबंध है तो उसका मूंडना या उसमें से कुछ भी काटना हर समय हराम (निषिद्ध) है, बल्कि उसे वैसे ही छोड़ देना और बढ़ाना अनिवार्य है; क्योंकि सहीहैन में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से साबित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मुश्रिकों का विरोध करो, और दाढ़ी को बढ़ाओ और मूंछों को बारीक करो)। तथा मुस्लिम ने अपनी सहीह में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से उल्लेख किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मूंछों को कतरो और दाढ़ी को बढ़ने दो, मजूस (अग्निपूजकों) का विरोध करो।).
इस युग में बहुत से लोगों के इस सुन्नत का उल्लंघन करने और दाढ़ी का विरोध करने, तथा काफिरों और महिलाओं की समानता अपनाने से संतुष्ट होने की वजह से आपदा बढ़ गई है, विशेषकर वे लोग जो ज्ञान और शिक्षा से संबंधित हैं। इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन (निःसन्देह हम अल्लाह ही के लिए हैं और उसी की ओर वापस होनेवाले हैं), हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह हमें और सारे मुसलमानों को सुन्नत का अनुपालन करने, उसे दृढ़ता के साथ थामने और उसकी ओर आमंत्रित करने की तौफीक़ प्रदान करे, अगरचे अक्सर लोग इससे उपेक्षा करते हैं। हस्बुनल्लाहु व नेमल वकील, व ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहलि अलिय्यिल अज़ीम।
फिर पुरुष एक चादर और तहबंद पहन ले। मुस्तहब यह है कि वे दोनों सफेद और साफ़ सुथरे हों। और यह भी मुस्तहब है कि वह जूते (नअल) में एहराम बांधे; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : (और तुम में से कोई व्यक्ति एक तहबंद, एक चादर और दो जूतियों में एहराम बांधे) इसे इमाम अहमद ने वर्णन किया है।
रही बात महिला की तो उसके लिए काले या हरे या उनके अलावा अन्य जिस रंग के कपड़े में भी चाहे एहराम बांध सकती है, पर वह पुरुषों की उनकी पोशाक में नकल करने से सावधान रहेगी। लेकिन उसके लिए एहराम की हालत में नकाब और दस्ताने पहनना अनुमेय नहीं है। परंतु वह अपने चेहरे को नकाब और दस्ताने के अलावा से ढांपेगी, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एहराम वाली महिला को नकाब और दस्ताने पहनने से मना किया है। रही बात कुछ सामान्य जन का महिलाओं के एहराम को एकमात्र हरे या काले रंग के कपड़े में विशिष्ट करने की, तो उसका कोई आधार नहीं है।
फिर वह स्नान और सफाई-सुथराई से फारिग होने और एहराम के कपड़े पहनने के बाद, अपने दिल से हज्ज या उम्रा में से उस इबादत की नीयत करे जिसे वह करना चाहता है, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : (कार्यों का आधार नीयतों (इरादों) पर है, और हर आदमी के लिए वही कुछ है जिसकी उसने नीयत की है।).
तथा उसके लिए उस चीज़ का शब्दों में उच्चारण करना धर्मसंगत है जिसकी उसने नीयत की है, यदि उसकी नीयत उम्रा की है तो वह कहेः (लब्बैका उम्रह) या (अल्लाहुम्मा लब्बैका उम्रह) और यदि उसकी नीयत हज्ज की है तो वह कहेः (लब्बैका हज्जा) या (अल्लाहुम्मा लब्बैका हज्जा), क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा किया है, और यदि उसने उन दोनों की एक साथ नीयत की है तो वह उसका तल्बिया पुकारते हुए कहेः (अल्लाहुम्मा लब्बैका उम्रतन व हज्जा)। सर्वश्रेष्ठ यह है कि वह शब्दों के द्वारा इसका उच्चारण सवारी पर विराजमान होने के बाद करे चाहे वह चौपाया हो या कार या अन्य, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सवारी (ऊँटनी) पर बैठने के बाद तल्बिया पुकारा था जब वह आपको लेकर मीक़ात से चल पड़ी थी, यही विद्वानो के कथनों में से सबसे सही कथन है।
उसके लिए नीयत का शब्दों द्वारा उच्चारण करना विशिष्ट रूप से केवल एहराम में जायज़ है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसा वर्णित है।
जहाँ तक नमाज़, तवाफ़ वगैरह का संबंध है तो उसके लिए इनमें से किसी चीज़ के अंदर शब्दों में नीयत करना उचित नहीं है, चुनाँचे वह यह नही कहेगाः नवैतो अन-उसल्लिया कज़ा व कज़ा (मैं ने ऐसी और ऐसी नमाज़ पढ़ने का इरादा किया) और न यह किः नवैतो अन-अतूफा कज़ा (मैं ने ऐसा तवाफ़ करने की नीयत की), बल्कि शब्दों के द्वारा उसका उच्चारण करना नवीन अविष्कारित बिदअतों में से है, और उसे ऊंचे स्वर में बोलना और अधिक बुरा और सख्त गुनाह का काम है। यदि नीयत का शब्दों में उच्चारण करना धर्मसंगत होता तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे अवश्य स्पष्ट करते, और अपने कर्म या कथन के द्वारा उसे उम्मत के लिए बयान करते, और सलफ सालेहीन (पुनीत पूर्वज) उसे करने में पहल किए होते।
जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसा वर्णित नहीं है, और न ही आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से ही ऐसा वर्णित है, तो पता चला कि यह बिदअत है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन हैः (सबसे बुरा मामला नवाचार हैं, और हर बिदअत पथ-भ्रष्टता है)। इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह में उल्लेख किया है। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (जिसने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ ईजाद की जिस का उस से कोई संबंध नहीं है तो वह मर्दूद (अस्वीकृत) है।). इस हदीस के सहीह होने पर बुख़ारी और मुस्लिम की सहमति है। तथा मुस्लिम की एक रिवायत के शब्द यह हैः (जिसने कोई ऐसा काम किया जिसपर हमारा आदेश नहीं है तो वह अस्वीकृत है।) समाप्त हुआ
फज़ीलतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह.
इस्लाम प्रश्न और उत्तर


'' Our Lord ! grant us good in this world and good in the hereafter and save us from the torment of the Fire '' [Ameen]
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{in Arab} :->
Rabbanaa aatinaa fid-dunyaa hasanatan wafil aakhirati hasanatan waqinaa 'athaaban-naar/-
(Surah Al-Baqarah ,verse 201)






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