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"BISMILLA HIRRAHMAAN NIRRAHEEM"
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"INDIA "- Time in New Delhi -
''HASBUNALLAHU WA NI'MAL WAKEEL'' - ''Allah is Sufficient for us'' + '' All praise is due to Allah. May peace and blessings beupon the Messenger, his household and companions '' (Aameen)
NAJIMUDEEN M
Dua' from Al'Qur'an - for SUCCESS in 'both the worlds': '' Our Lord ! grant us good in this world and good in the hereafter and save us from the torment of the Fire '' [Ameen] - {in Arab} :-> Rabbanaa aatinaa fid-dunyaa hasanatan wafil aakhirati hasanatan waqinaa 'athaaban-naar/- (Surah Al-Baqarah ,verse 201)*--*~
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"Allahumma Salli'Alaa Muhammadin Wa 'Alaa'Aali Muhammadin, kamaa Sallayta 'Alaa' Ibraheema wa 'Alaa 'Aali 'Ibraheema, 'Innaka Hameedun Majeed. Allahumma Baarik'Alaa Muhammadin Wa 'Alaa'Aali Muhammadin, kamaa Baarakta 'Alaa' Ibraheema wa 'Alaa 'Aali 'Ibraheema, 'Innaka Hameedun Majeed." ******
"Al Qur'an - first Ayath, came to our Nabi (s.a.w)
"Read! In the name of yourLord Who created. Created man from clinging cells. Read! And your Lord is Most Bountiful. The One Who taught with the Pen. Taught man what he did not know." (Qur'an 96: 1-5) - ~ - ~ - lt;18.may.2012/friday-6.12pm:{IST} ;(Ayatul Kursi Surah Al-Baqarah, Ayah 255/)
*- Al Qur'an's last ayath came to Nabi{s.a.w} -*
Allah states the following: “Thisday have I perfected your religion for you, completed My favour upon you, and have chosen for you Islam as your religion.” [Qur’an 5:3]
Surat alAhzab 40; Says Our Prophet Muhammad (s.a.w) is the final Prophet sent by Allah'
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* A Precious DUA' *
Dua' - '' All praise is due to Allah'. May peace and blessings beupon the Messenger, his household and companions '' - - - O Allah, I am Your servant, son of Your servant, son of Your maidservant; my forelock is in Your hand; Your command over me is forever executed and Your decree over me is just; I ask You by every name belonging to You that You have named Yourself with, or revealed in Your book, ortaught to any of Your creation, or have preserved in the knowledge of the unseen with You, that You make the Qur'an thelife of my heart and the light of my breast, and a departure for my sorrow and a release from my anxiety.
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Tuesday, August 1, 2017

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அமலா : என்னடி, நீ வேலைக்காரி சேலையைப் போய் கட்டியிருக்க?
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விமலா : அப்பத்தான்டி என் புருசன் ஏறெடுத்தே என்னைப் பாக்குறாரு.

காதலருடன் ஓடப் போகிறேன்.. தாலி கட்டியதும் மணமகன் காதில் கிசுகிசுத்த மணமகள்.. கைகலப்பு! - OneIndia Tamil | DailyHunt

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Bad behaviour, Doubt & clear, - जो व्यक्ति हज्ज या उम्राकरना चाहता हैवह मीक़ात पर क्या करेगा?.












जो व्यक्ति हज्ज या उम्रा करना चाहता है उसे मीक़ात पर क्या करना चाहिए?
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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
‘‘जब वह मीक़ात पर पहुँचे तो उसके लिए मुस्तहब (अच्छा) है कि वह स्नान करे और सुगंध (खुश्बू) लगाए। क्योंकि यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एहराम बांधने के समय सिले हुए वस्त्र उतार दिए और स्नान किया। और क्योंकि सहीहैन (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम) में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से साबित है कि उन्हों ने फरमाया : (मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सुगंध लगाती थी आपके एहराम के लिए आपके एहराम बांधने से पहले, और आपके हलाल होने पर आपके काबा का तवाफ़ करने से पहले।) तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को, जब वह मासिक धर्म से हो गईं और उन्हों ने उम्रा का एहराम बांध रखा था, यह आदेश दिया कि वह स्नान कर हज्ज का एहराम बांधें। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अस्मा बिन्त उमैस को जब उन्हों ने ज़ुल-हुलैफा पहुँचकर बच्चे को जना, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आदेश दिया कि वह स्नान करें और कपड़े का लंगोट बांध लें और एहराम बांधें। इससे पता चला कि औरत जब मीक़ात पर पहुँचे और वह मासिक धर्म से हो या बच्चे के जनने के बाद उसे खून बह रहा हो, तो वह स्नान करेगी और लोगों के साथ एहराम बांधेगी और वह अल्लाह के घर (काबा) का तवाफ़ करने के अलावा हर वह काम करेगी जो एक हाजी करता है, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा और अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को इसका आदेश दिया था।
जो आदमी एहराम बांधना चाहता है उसके लिए मुस्तहब यह है कि वह अपनी मूंछ, अपने नाखूनों और अपने जघन और बगल के बालों की देखभाल करे, चुनाँचे जिसे काटने की ज़रूरत हो उसे काट ले, ताकि ऐसा न हो कि उसे एहराम के बाद उसे काटने की जरूरत पड़े जबकि वह उसके ऊपर (एहराम की हालत में होने के कारण) हराम व निषिद्ध हो। और इसलिए कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों के लिए इन चीज़ों का हर समय ध्यान रखने का हुक्म दिया है। जैसाकि सहीहैन में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (पाँच चीज़ें प्राकृतिक हैं : खत्ना, उस्तरे से जघन के बालों को साफ करना, मूंछें कतरना, नाखून काटना, बगल के बाल उखाड़ना।) तथा सहीह मुस्लिम में अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया: (हमारे लिए मूंछें कतरने, नाखून काटने, बगल के बाल उखाड़ने और जघन के बालों को मूंडने के विषय में समय निर्धारित किया गया है कि : हम उन्हें चालीस दिन से अधिक न छोड़ें।)
जबकि नसाई ने इन शब्दों के साथ रिवायत किया है कि : (हमारे लिए अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने समय निर्धारित किया है।) तथा अहमद, अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने नसाई के शब्दों के साथ रिवायत किया है। रही बात सिर (के बालों) की, तो एहराम बांधने के समय इसमें से कुछ भी लेना (काटना) धर्मसंगत नहीं है, न तो पुरुषों के लिए और न ही महिलाओं के लिए।
जहाँ तक दाढ़ी का संबंध है तो उसका मूंडना या उसमें से कुछ भी काटना हर समय हराम (निषिद्ध) है, बल्कि उसे वैसे ही छोड़ देना और बढ़ाना अनिवार्य है; क्योंकि सहीहैन में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से साबित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मुश्रिकों का विरोध करो, और दाढ़ी को बढ़ाओ और मूंछों को बारीक करो)। तथा मुस्लिम ने अपनी सहीह में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से उल्लेख किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मूंछों को कतरो और दाढ़ी को बढ़ने दो, मजूस (अग्निपूजकों) का विरोध करो।).
इस युग में बहुत से लोगों के इस सुन्नत का उल्लंघन करने और दाढ़ी का विरोध करने, तथा काफिरों और महिलाओं की समानता अपनाने से संतुष्ट होने की वजह से आपदा बढ़ गई है, विशेषकर वे लोग जो ज्ञान और शिक्षा से संबंधित हैं। इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन (निःसन्देह हम अल्लाह ही के लिए हैं और उसी की ओर वापस होनेवाले हैं), हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह हमें और सारे मुसलमानों को सुन्नत का अनुपालन करने, उसे दृढ़ता के साथ थामने और उसकी ओर आमंत्रित करने की तौफीक़ प्रदान करे, अगरचे अक्सर लोग इससे उपेक्षा करते हैं। हस्बुनल्लाहु व नेमल वकील, व ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहलि अलिय्यिल अज़ीम।
फिर पुरुष एक चादर और तहबंद पहन ले। मुस्तहब यह है कि वे दोनों सफेद और साफ़ सुथरे हों। और यह भी मुस्तहब है कि वह जूते (नअल) में एहराम बांधे; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : (और तुम में से कोई व्यक्ति एक तहबंद, एक चादर और दो जूतियों में एहराम बांधे) इसे इमाम अहमद ने वर्णन किया है।
रही बात महिला की तो उसके लिए काले या हरे या उनके अलावा अन्य जिस रंग के कपड़े में भी चाहे एहराम बांध सकती है, पर वह पुरुषों की उनकी पोशाक में नकल करने से सावधान रहेगी। लेकिन उसके लिए एहराम की हालत में नकाब और दस्ताने पहनना अनुमेय नहीं है। परंतु वह अपने चेहरे को नकाब और दस्ताने के अलावा से ढांपेगी, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एहराम वाली महिला को नकाब और दस्ताने पहनने से मना किया है। रही बात कुछ सामान्य जन का महिलाओं के एहराम को एकमात्र हरे या काले रंग के कपड़े में विशिष्ट करने की, तो उसका कोई आधार नहीं है।
फिर वह स्नान और सफाई-सुथराई से फारिग होने और एहराम के कपड़े पहनने के बाद, अपने दिल से हज्ज या उम्रा में से उस इबादत की नीयत करे जिसे वह करना चाहता है, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : (कार्यों का आधार नीयतों (इरादों) पर है, और हर आदमी के लिए वही कुछ है जिसकी उसने नीयत की है।).
तथा उसके लिए उस चीज़ का शब्दों में उच्चारण करना धर्मसंगत है जिसकी उसने नीयत की है, यदि उसकी नीयत उम्रा की है तो वह कहेः (लब्बैका उम्रह) या (अल्लाहुम्मा लब्बैका उम्रह) और यदि उसकी नीयत हज्ज की है तो वह कहेः (लब्बैका हज्जा) या (अल्लाहुम्मा लब्बैका हज्जा), क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा किया है, और यदि उसने उन दोनों की एक साथ नीयत की है तो वह उसका तल्बिया पुकारते हुए कहेः (अल्लाहुम्मा लब्बैका उम्रतन व हज्जा)। सर्वश्रेष्ठ यह है कि वह शब्दों के द्वारा इसका उच्चारण सवारी पर विराजमान होने के बाद करे चाहे वह चौपाया हो या कार या अन्य, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सवारी (ऊँटनी) पर बैठने के बाद तल्बिया पुकारा था जब वह आपको लेकर मीक़ात से चल पड़ी थी, यही विद्वानो के कथनों में से सबसे सही कथन है।
उसके लिए नीयत का शब्दों द्वारा उच्चारण करना विशिष्ट रूप से केवल एहराम में जायज़ है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसा वर्णित है।
जहाँ तक नमाज़, तवाफ़ वगैरह का संबंध है तो उसके लिए इनमें से किसी चीज़ के अंदर शब्दों में नीयत करना उचित नहीं है, चुनाँचे वह यह नही कहेगाः नवैतो अन-उसल्लिया कज़ा व कज़ा (मैं ने ऐसी और ऐसी नमाज़ पढ़ने का इरादा किया) और न यह किः नवैतो अन-अतूफा कज़ा (मैं ने ऐसा तवाफ़ करने की नीयत की), बल्कि शब्दों के द्वारा उसका उच्चारण करना नवीन अविष्कारित बिदअतों में से है, और उसे ऊंचे स्वर में बोलना और अधिक बुरा और सख्त गुनाह का काम है। यदि नीयत का शब्दों में उच्चारण करना धर्मसंगत होता तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे अवश्य स्पष्ट करते, और अपने कर्म या कथन के द्वारा उसे उम्मत के लिए बयान करते, और सलफ सालेहीन (पुनीत पूर्वज) उसे करने में पहल किए होते।
जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसा वर्णित नहीं है, और न ही आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से ही ऐसा वर्णित है, तो पता चला कि यह बिदअत है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन हैः (सबसे बुरा मामला नवाचार हैं, और हर बिदअत पथ-भ्रष्टता है)। इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह में उल्लेख किया है। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (जिसने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ ईजाद की जिस का उस से कोई संबंध नहीं है तो वह मर्दूद (अस्वीकृत) है।). इस हदीस के सहीह होने पर बुख़ारी और मुस्लिम की सहमति है। तथा मुस्लिम की एक रिवायत के शब्द यह हैः (जिसने कोई ऐसा काम किया जिसपर हमारा आदेश नहीं है तो वह अस्वीकृत है।) समाप्त हुआ
फज़ीलतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह.
इस्लाम प्रश्न और उत्तर


























Bad behaviour, Doubt & clear, - * Soundness of the hadith “Whoever is not prevented from doing Hajj by genuine need,an oppressive ruler or debilitating sickness, and dies without having done Hajj, let him die if he wishes as a Jew or if he wishes as a Christian”





What is the authenticity of the following two hadeeth on Hajj?
The Prophet, sallallaahu ‘alayhi wa sallam, said: “He who possess enough food for the trip, a means of transportation to reach to Makkah, and yet does not perform Hajj, then he dies, he would then die as a Jew or a Christian.” [At-Tirmithi, Al-Bazzaar, and others]
In addition,Abu Umaamah narrated that the Prophet, sallallaahu ‘alayhi wa sallam, said: “He who was not prevented by a valid excuse, sickness, or an oppressive ruler, yet did not perform Hajj, will die as a Jew or a Christian.” [Ad-Daarimi, Al-Bayhaqi, and others]
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Praise be to Allah
Firstly:
It was narrated by at-Tirmidhi (812), at-Tabari in hisTafseer(6/41), al-Bazzaar (861), al-Bayhaqi inash-Shu‘ab(3692) and Ibn al-Jawzi inal-Mawdoo‘aat(2/209) via Hilaal ibn ‘Abdullah, the freed slave of Rabee‘ah ibn ‘Amr ibn Muslim al-Baahili, who said: Abu Ishaaq al-Hamdaani told us, from al-Haarith, from ‘Ali who said: The Messenger of Allah (blessings and peace of Allah be upon him) said: “Whoever possesses provisions and a mount that would enable him to reach the House of Allah, but does not do Hajj, it would not matter if he dies as a Jew or a Christian, because Allah says in His Book (interpretation of the meaning):“And Hajj (pilgrimage to Makkah) to the House (Kabah) is a duty that mankind owes to Allah, those who can afford the expenses (for one’s conveyance, provision and residence)” [Aal ‘Imraan 3:97].
At-Tirmidhi said, immediately after narrating this hadith: This is a ghareeb hadith; we only know it via this isnaad, and there are some reservations about its isnaad. Hilaal ibn ‘Abdullah is majhool (unknown), and al-Haarith was regarded as da‘eef (weak) in hadith. End quote.
Al-Bukhaari said of this Hilaal that he was munkar al-hadith (his hadith is odd). At-Tirmidhi said: He is majhool (unknown). Ibn ‘Adiyy said: He is known for this hadith, but it is not mahfooz (i.e., it is not found with anyone else). Al-Haakim Abu Ahmad said: He is not qawiy (strong) in their view.
Tahdheeb at-Tahdheeb(11/82)
Al-Haarith is al-Haarith ibn ‘Abdullah al-A‘war, who is well known to be da‘eef. He was regarded as a liar by ash-Shu‘bi and Ibn al-Madeeni. See:at-Tahdheeb(2/145)
The hadith has other isnaads, all of which are not free of weakness.
This hadith was classed as da‘eef by more than one of the scholars. It was classed as da‘eef by at-Tabari in hisTafseer(6/45); Ibn al-Jawzi inal-Mawdoo‘aat(2/210); al-Mundhiri inat-Targheeb wa’t-Tarheeb(2/137); Ibn ‘Abd al-Haadi inat-Tanqeeh(3/404); and al-Haytami inaz-Zawaajir(1/330). It was narrated that an-Nawawi classed it as da‘eef, and al-Albaani also classed it as da eef inDa‘eef at-Tirmidhi.
But there is a similar report that is soundly attributed to ‘Umar (may Allah be pleased with him). Ibn Katheer (may Allah have mercy on him) said:
Abu Bakr al-Ismaa‘eeli al-Haafiz narrated from the hadith of Abu ‘Amr al-Awzaa‘i: Ismaa‘eel ibn ‘Ubaydullah ibn Abi’l-Muhaajir told me: ‘Abd ar-Rahmaan ibn Ghanm told me that he heard ‘Umar ibn al-Khattaab say: Whoever is able to do Hajj but does not do Hajj, then it is all the same whether he dies as a Jew or a Christian. This is a saheeh isnaad going back to ‘Umar (may Allah be pleased with him). End quote.
Tafseer Ibn Katheer(2/85)
For more information, please see the answer to question no. 210701
Secondly:
It was narrated by ad-Daarimi (1826), al-Bayhaqi inash-Shu‘ab(3693), Abu Nu‘aym inal-Hilyah(9/251), and Ibn al-Jawzi inat-Tahqeeq(2/118), via Shareek, from Layth, from ‘Abd ar-Rahmaan ibn Saabit, from Abu Umaamah who said: The Messenger of Allah (blessings and peace of Allah be upon him) said: “Whoever is not prevented from doing Hajj by genuine need, an oppressive ruler or debilitating sickness, and dies without having done Hajj, let him die if he wishes as a Jew or if he wishes as a Christian.”
This is a da‘eef (weak) isnaad. Layth – who is ibn Abi Saleem – is da‘eef. He was classed as da‘eef by Ahmad, Ibn Ma‘een, an-Nisaa’i and others. See:al-Mizaan(3/420).
Shareek – who is ibn ‘Abdullah al-Qaadi – is also da‘eef and had a poor memory. He was classed as da‘eef by al-Qattaan, Ibn al-Mubaarak, Ibn Ma‘een, al-Jawzjaani, and others.
See:al-Mizaan(2/270)
Abu’l-Ahwas Sallaam ibn Sulaym differed with him. He narrated it from Layth, from ‘Abd ar-Rahmaan ibn Saabit, who said: The Messenger of Allah (blessings and peace of Allah be upon him) said… and he quoted it as a mursal report. This was narrated by Ibn Abi Shaybah (3/305).
It was also narrated from Layth by ath-Thawri, as reported by al-Khallaal inas-Sunnah(5/46)
This is more sound, but it is also da‘eef, because of the weakness of Layth and because it is mursal.
Al-Haafiz Ibn Hajar (may Allah have mercy on him) said:
Layth is da‘eef and Shareek had a poor memory. Sufyaan differed with him and narrated it in a mursal report. It was narrated by Ahmad inKitaab al-Eemaanfrom Wakee‘ from Sufyaan from Layth from Ibn Saabit who said: The Messenger of Allah (blessings and peace of Allah be upon him) said: “Whoever dies without having done Hajj and was not prevented from doing it by debilitating sickness or an oppressive ruler or genuine need…” He narrated it as a mursal report. It was also narrated by Ibn Abi Shaybah from Abu’l-Ahwas from Layth in a mursal report. End quote.
At-Talkhees al-Habeer(2/486)
This report has other isnaads from Shareek. Ibn al-Jawzi said in at-Tahqeeq (2/118):
It was narrated by ‘Ammaar ibn Matar,from Shareek, from Saalim, from Abu Umaamah. Al-‘Uqayli said: ‘Ammaar narrates munkar reports from trustworthy narrators. Ibn ‘Adiyy said: He is matrook al-hadith (his hadith is to be ignored). End quote.
Al-Haafiz Ibn Hajar (may Allah have mercy on him) said:
It was narrated by Abu Ya‘la via other isnaads from Shareek, that are different to the first isnaad. Its narrator from Shareek is ‘Ammaar ibn Matar, who is da‘eef. End quote.
At-Talkhees al-Habeer(2/486).
Ibn al-Qaysaraani said:
It was narrated by ‘Ammaar ibn Matar ar-Rahhaawi from Shareek, from Mansoor, from Saalim ibn Abi’l-Ja‘d, from Abu Umaamah, but this is not known by anyone else. The problem with it stems from ‘Ammaar ar-Rahhaawi. End quote.
Dhakheerat al-Huffaaz(4/2407)
This ‘Ammaar is Abu Haatim ar-Raazi, who used to tell lies. Ibn ‘Adiyy said: His hadiths are false.
Mizaan al-I‘tidaal(3.170)
Ibn al-Qaysaraani said:
It was narrated by Nasr ibn Muzaahim al-Kufi from ath-Thawri, from Layth, from Ibn Saabit, from Abu Umaamah. This is not known by anyone else. The problem with it stems from this Nasr. End quote.
Dhakheerat al-Huffaaz(4/2407)
Concerning Nasr ibn Muzaahim, adh-Dhahabi said inal-Mizaan(4/253): He is a Raafidi fanatic; they dismissed his hadith.
It was narrated by Abu’l-Hasan an-Ni‘aali in hisJuz’(71) via Muhammad ibn ‘Abdullah al-Ashnaani: Ahmad ibn Hanbal told us: Muhammad ibn Ja‘far told us: Shu‘bah told us, from Simaak ibn Harb, from ‘Abd ar-Rahmaan ibn ‘Abdullah ibn Mas‘ood, from his father, in a marfoo‘ report.
Concerning this al-Ashnaani, ad-Daaraqutni said: He was a charlatan. Al-Khateeb said: He used to fabricate hadith.Lisaan al-Mizaan(5/228).
Concerning an-Ni‘aali, the author ofal-Juz’, al-Khateeb said: He was a Raafidi who would seek out strange and odd reports.Tareekh Baghdad(5/383).
In conclusion: the two hadiths are not sound.
And Allah knows best.